02 सितंबर 2011

मिर्ज़ा मुहम्मद रफ़ी ' सौदा ' (1714-1781) مرزا محمد رفیع سؔودا Mirza Muhammad Rafi 'Sauda'























दिल ! मत टपक नज़र से कि पाया न जाएगा
ज्यों अश्क फिर ज़मीं से उठाया न जाएगा

रुख़सत है बाग़बां कि टुक इक देख लें चमन
जाते हैं वां, जहां से फिर आया न जाएगा

तेग़े-जफ़ा-ए-यार से दिल ! सर न फेरियो
फिर मुंह वफ़ा को हम से दिखाया न जाएगा

काबा अगरचे टूटा तो क्या जा-ए-ग़म है शेख़
कुछ क़स्रे-दिल नहीं कि बनाया न जाएगा

ज़ालिम मैं कह रहा था कि तू इस ख़ू से दरगुज़र
'सौदा' का क़त्ल है यह, छुपाया न जाएगा

ज्यों अश्क - आंसू की तरह। ज़मीं -धरती । रुख़सत - विदा। बाग़बां - माली । चमन-उद्यान,वाटिका। वां - वहाँ। तेग़े-ज़फ़ा-ए-यार- प्रेमिका अथवा मित्र की अत्याचार रुपी तलवार। वफ़ा - प्रेम । अगरचे- यदि। जा-ए-ग़म - दुखी होने का कारण । क़स्रे-दिल -ह्रदय रुपी भवन । ख़ू- स्वभाव । दरगुज़र-अनदेखा करना,परे रहना।

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