आँख लड़ते ही हुआ इश्क़ का आज़ार मुझे
चश्म बीमार तिरी कर गई बीमार मुझे
चश्म बीमार तिरी कर गई बीमार मुझे
दिल को ज़ख़्मी तो वह करते हैं मगर हैरत है
नज़र आती नहीं चलती हुई तलवार मुझे
देखिये जान पे गिरती है कि दिल पर बिजली
दूर से ताक रही है निगाह-ए-यार मुझे
गरचे सौ बार इन आँखों से तुझे देखा है
गरचे सौ बार इन आँखों से तुझे देखा है
मगर अब तक है वही हसरते-दीदार मुझे
मुझको परवा नहीं नासेह तेरी ग़मख़्वारी की
ग़म सलामत रहे काफ़ी है यह ग़मख़्वार मुझे
शीशा-ओ-जाम पे साक़ी कोई इल्ज़ाम नहीं
तेरी आँखें किये देती हैं गुनहगार मुझे
यार साक़ी हो तो चलता है अभी दौर 'जलील'
यार साक़ी हो तो चलता है अभी दौर 'जलील'
कौन कहता है कि पीने से है इनकार मुझे
आज़ार- रोग,विपत्ति। चश्म-आँख। निगाह-ए-यार- प्रेमी/प्रेमिका की निगाह। हसरते-दीदार- दर्शन की अभिलाषा । नासेह- उपदेशक,नसीहत करने वाला । ग़मख़्वारी- दुःख बांटना,सहानुभूति । ग़मख़्वार-सहानुभूति रखने वाला। शीशा-ओ-जाम-कांच की सुराही और मदिरा पात्र। गुनाह्गार- दोषी ( यहाँ अभिप्राय नशा एवं उन्माद के अपराध से है अर्थात आँखों को मादक कहा गया है ) ।साक़ी-मदिरा पिलाने वाला ।
bahut khub
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